Monday 30 March 2020

मनु कहिन (22) - वैश्विक तकनीकी प्रगति और हम

चिंतन

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आप इसे संयोग कह सकते हैं। पर, एक सच्चाई तो है। हम और हमारी उम्र या उसके आसपास के हम सभी लोग विश्व परिदृश्य मे हो रहे या हो चुके एक अहम बदलाव के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं और वर्तमान मे भी अनुभव कर रहे हैं। बदलाव से हम वाकिफ हैं। इसकी अच्छाइयों  के साथ-साथ इसकी नकारात्मक बारीकियों को भी हम अनुभव कर रहे हैं। 

कल वो एक दौर था जब हम महज़ एक टेलीफोन काॅल करने के लिए पीसीओ पर अपनी बारी का इंतजार करते थे। एक नज़र मीटर पर टिकी रहती थी ताकि मीटर की रीडिंग जेब मे रखे पैसे पर भारी न पड़ जाए। दूरस्थ किसी अपनों से बातचीत करना और उसका हालचाल जानना एक task हुआ करता था। पर, आज की स्थिति क्या है ? शायद, बताने की जरूरत नही है !  

हां, एक बात का मै यहां जिक्र करना चाहूंगा! मेरी नौकरी तब तक लग चुकी थी। कार्यालय मे,  आपरेटर के माध्यम से फोन करने की सुविधा उपलब्ध थी।पर, मन एक "टेलीफोन फोबिया" से ग्रस्त था। इस्तेमाल मे डर लगता था। कहीं कोई गलती न हो जाए। जैसे फोन न होकर कोई अलहदा वस्तु हो। 

हां, तब के और अब की स्थिति मे मेरे विचार से जो बुनियादी फर्क है वो यह कि आज जब हम एक दूसरे की पल पल की खबर रख रहे हैं तो हम ज्यादा अधीर नज़र आने लगे हैं। धैर्य कुछ कम सा हो गया है। 

जरा उस वक्त के बारे मे सोचिए जब हम अपनी महत्वपूर्ण बातों को रखने के लिए अक्षरों एवं शब्दों मे अपने संदेश एक तय शुल्क अदा कर भेजा करते थे। यहां हम बातें कर रहे हैं टेलीग्राफ मेसेज की। भावनाओं काइजहार और संप्रेषण ! क्या दिन थे वो! आज देखिए, हमने यहां लिखा और ये लिजिए आप तक पहुंच भी गया। कितना आसान हो गया है भावनाओं का इजहार और संप्रेषण! 

पर, क्या इतने त्वरित गति से अपनी भावनाओं का इजहार और संप्रेषण करने के बाद भी हमारे संबंधों मे जो प्रगाढ़ता आनी चाहिए थी ! क्या वो आई? शायद, नही ! कहां से आएगी हमने तो धैर्य ही खो दिया है। अधीर हो चुके हैं हम सब।
फिर, समय आया कम्पूटर का। लोग बाग अजीब अजीब आशंकाओं से ग्रस्त थे। हर एक व्यक्ति की अपनी धारणा थी। अपनी एक कहानी थी। कहीं मैंने पढ़ा था , जब रेल इंजन का अविष्कार हुआ था तब लोगों ने उसे देखकर कहना शुरू किया था "एक काला राक्षस दौड़ता हुआ आता दिखाई देता है" ।  अजीब अजीब धारणाओं और आशंकाओं से लोग बाग ग्रस्त थे। खैर, वो तो लगभग २०० वर्ष पुरानी बात थी।  हां, कंप्यूटर के संदर्भ मे खैर वैसी बात तो नही थी ! पर, एक अजूबा तो था। पर, आज क्या स्थिति है ? क्या, कंप्यूटर के बिना हम एक कदम भी आगे बढ़ा सकते हैं। शायद नही! ऐसा कोई क्षेत्र नही है जहां कंप्यूटर ने अपनी पैठ न बनाई हो या फिर अपनी उपयोगिता न सिद्ध की हो।

फिर ,जनाब एक दौर आया मोबाइल फोन का। क्रांति आ गई। हां, पर आप इसे कंप्यूटर का छोटा वर्ज़न कह सकते हैं। ये वो दौर था जहां एक ओर लोग बाग टेलीफोन बूथ पर जाकर पंक्तिबद्ध होकर अपनी बारी का इंतजार करते थे। मैं पुनः दुहरा रहा हूं। दूरस्थ अपनों से बात करना एक टास्क हुआ करता था। मोबाइल फोन ने दूरियां सिमटा दी। एक फिल्म आई थी - दुनिया मेरी जेब मे । हालांकि ये फिल्म मैंने देखी नही है! पर, भाई साहब मोबाइल फोन ने तो वाकई मे आपकी दुनिया आपके जेब मे ही डाल दी। सीमाएं खत्म हो गई। दूरियां मिट गईं। याद कीजिए वो दौर जब मोबाइल पर इनकमिंग कॉल पर भी पैसे लगते थे। मोबाइल पर फोन आना एक कौतूहल पैदा करता था । क्या लोगों ने उस वक्त कभी सोचा होगा कि मोबाइल उनके जीवन पर इस तरह से हावी हो जाएगा कि उससे पीछा छुड़ाने के लिए यत्न करना पड़ेगा। आज वही वक्त आ गया है। मोबाइल , कंप्यूटर आदि की वजह से दुनिया वाकई बहुत छोटी हो गई है पर, इसकी एक कीमत चुकानी पड़ रही है। हम वास्तविक जीवन को न जीकर आभासी जीवन को जीने लग गए हैं। 

इस दौरान वैश्विक स्तर पर बहुत सारे बदलाव आए। इन बदलावों की वजह से हमारे रहन सहन मे भी बदलाव देखने को मिला। ओटो मोबाइल सेक्टर मे क्रांति देखने को मिला। हवाई परिवहन के क्षेत्र मे व्यापक बदलाव देखने को मिला। एक आम आदमी भी आगे बढ कर सोचने लगा था। उसके सोचने के आयाम मे परिवर्तन देखने को मिल रहा था। दुनिया बदल सी गई थी।

अब जब हम बदलाव और उससे हम सभी कैसे जुड़ गए हैं ! किस तरह से हम सभी साक्षी हैं इन चीजों के! जब उसकी बातें कर रहे हैं तो हमें कोरोना की बात भी करनी चाहिए। एक अभूतपूर्व दौर से गुजर रहे हैं हम सभी। पूरा विश्व हलकान है कोरोना के प्रकोप से। हम लोगों ने इतिहास मे पढा था, समाचार पत्रों मे छपे खबरों के माध्यम से जाना था किसी काल मे विश्व के भिन्न-भिन्न भागों मे फैले महामारी के बारे मे। आज हम सभी साक्षी हैं। आज हमारे पास एक उन्नत स्वास्थ्य व्यवस्था है फिर भी समस्त विश्व एक साथ मिलकर भी कोरोना पर अब तक विजय प्राप्त नही कर पाए हैं। कभी किसी ने सोचा था कि मनुष्य जो खुद को सर्वशक्तिमान समझने का मुगालता पाले बैठा उसे यूं घूटने टेकने पर मजबूर होना पड़ेगा। 
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लेखक - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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