लघुकथा
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सुमेर आज सुबह से ही परेशान सा अपने घर में इधर-उधर घूम रहा था। इतना बैन वो कभी न था जैसा आज नज़र आ रहा था। घर वाले भी उसे इधर-उधर घूमते देख रहे थे पर सभी ख़ामोश और सहमे हुए से थे।
टीवी पर समाचार आ रहा था कि "देश में कोरोनावायरस से कई व्यक्तियों की जान चली गई है? लोग अपनों से बिछड़ने लगे हैं। सभी अपनी ज़िंदगी को बचाने के लिए अपने घरों में सुरक्षित रहें, कोई घर से बाहर न निकले"। इस वीडियो को सुनने कर सभी सहम से गए थे और सुमेर अत्यधिक तन्हा हो रहा था। उसकी पत्नी गर्भवती थी और उसका नौवां महीना चल रहा था। बच्चे को जन्म देने की तिथि भी नजदीक आ रही थी। उसके मन में अपनों से बिछड़ने का डर समाने लगा था।
फोन की घंटी बजते ही सुमेर ने काँपते स्वर से "हलो" कहा। "मैं डॉ। सतीश बोल रहा हूँ दूसरी तरफ से आवाज आई"। मेरी डॉ पत्नी ही आप की पत्नी का हर महीने चेकअप कर रही थी। इस समय वह शहर में मौजूद नहीं है। लॉकडाउन की वजह से उसे हैदराबाद में ही रुक जाना पड़ा। वह कुछ जरूरी काम से हैदराबाद गया था। "उन्होंने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा -" आज सुबह ही उसका फोन आया था। आप बिल्कुल भी चिंता न करें। मैं आप की पत्नी का पूरा ध्यान रखूँगा जब भी आप की पत्नी को प्रसव पीड़ा हो, आप मुझे तुरंत फ़ोन करिएगा मैंने यहाँ पर सभी सुविधाओं को उपलब्ध करा ली है। आप निश्चिंत रहें ”।
डॉ। सतीश की बातों को सुनकर सुमेर खुश हो गया। उन्होंने सभी घर के सदस्यों को बुला कर कहा- "बिछड़ते लोगों का समाचार सुनकर मैं तो घबरा ही गया था पर डॉ. सतीश ने मेरी सारी बेचैनी खत्म कर दी। वास्तव में डॉक्टर, भगवान का दूसरा रूप है। अब मुझे अपने लोगों के बारे में नहीं बताना चाहिए। छोड़ देंगे ”। सुमेर की बात सुनकर परिवार के लोगों में खुशियाँ लौट आईं।
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सभी साहित्यक मित्रों को विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रील) की हार्दिक शुभकामनाएँ
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सभी की कलम निरंतर यूँही चलती रहे
आप की बातें पुस्तकों में ढलती रहे
कलम बहुत कमाल दिखाती
दूसरों के साथ -साथ खुद को
अपने से मिलाती है
किताबों की दुनिया ही निराली है
उसमें इन्द्रधनुष की लाली है ।
मैंने अब तक केवल एक ही पुस्तक प्रकाशित करवाई है । बाक़ी 11साझा संकलन में रचनाएं प्रकाशित हुई है । दो गुजराती से हिन्दी अनुवादित पुस्तकें है ।
मेरा लेखन स्वांत:सुखाय है । इसलिए बहुत संतुष्टि देता है ।पर सभी साहित्यकारों को पढ़ना आनंद दे जाता है । किताबें एक सच्चे दोस्त की तरह होती हैं जो समय आने पर साथ देती हैं । एक बार पुनः सभी को पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
खुद ही लिखती हूँ ,खुद ही गा लेती हूँ
अपने स्वरों में खुद को पा लेती हूँ ।
- आभा दवे
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सभी की कलम निरंतर यूँही चलती रहे
आप की बातें पुस्तकों में ढलती रहे
कलम बहुत कमाल दिखाती
दूसरों के साथ -साथ खुद को
अपने से मिलाती है
किताबों की दुनिया ही निराली है
उसमें इन्द्रधनुष की लाली है ।
मैंने अब तक केवल एक ही पुस्तक प्रकाशित करवाई है । बाक़ी 11साझा संकलन में रचनाएं प्रकाशित हुई है । दो गुजराती से हिन्दी अनुवादित पुस्तकें है ।
मेरा लेखन स्वांत:सुखाय है । इसलिए बहुत संतुष्टि देता है ।पर सभी साहित्यकारों को पढ़ना आनंद दे जाता है । किताबें एक सच्चे दोस्त की तरह होती हैं जो समय आने पर साथ देती हैं । एक बार पुनः सभी को पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
खुद ही लिखती हूँ ,खुद ही गा लेती हूँ
अपने स्वरों में खुद को पा लेती हूँ ।
- आभा दवे
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रचनाकार - आभा दवे
रचनाकार का ईमेल - abhaminesh@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com