Sunday 5 January 2020

मनु कहिन (14) - वीआईपी सिंड्रोम

ललित निबंध

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हम अति विशिष्ट व्यक्ति हैं। क्या आपको ऐसा नही लगता है! मुझे तो लगता है कि सिर्फ मैं ही नही हम सभी अति विशिष्ट व्यक्ति हैं। वी वी आई पी सिंड्रोम से पीड़ित हैं हम सभी । अब देखिए ना, पैसा बराबर लग रहा है पर, बस मे पीछे की सीट पर बैठना खल जाता है। सीधे दिल पर चोट पहुंचती है। ट्रेन की सवारी कर रहे हैं और किसी कारणवश रिजर्वेशन ऊपर की सीट या फिर साइड वाली सीट का मिल जाए, वैसे देखा जाए तो कोई खास फर्क नही पड़ता है पर, साहब ऐसा लगता है मानो हम देश के दोयम दर्जे के नागरिक हैं। हमारी तो कोई सुनने वाला ही नही है। बिल्कुल दीन हीन हैं भाई साहब हम। अब  फिर देखिए न, फ्लाइट मे पीछे की रो मे बैठा दिया गया। अब किस किस को अपना दुखड़ा सुनाएं। हमें तो कोई पूछता ही नही। भाई हमने भी बराबर के पैसे दिए हैं। अब अपने दिल को कैसे समझाऊं! दिल है कि मानता नही! कैसे बताऊं कि मुझे भी अति विशिष्ट व्यक्ति के रूप मे सम्मान चाहिए। 

व्यापारी वर्ग आपकी इन समस्याओं को बखूबी समझता है । तभी तो कभी एक्सट्रा लेग स्पेस के नाम पर तो कभी प्रीमियम सीट के नाम पर आपको खुश रखते हुए आपको अति विशिष्ट व्यक्ति के होने का अहसास दिलाते हुए आपके जेब का कुछ बोझ हल्का कर जाता है। आप एक भ्रम की दुनिया मे जी रहे हैं। जिंदगी यह नही है जो आप जी रहे हैं या जीना चाह रहे हैं। जिंदगी इन सभी से परे है मेरे दोस्त। इसका मजा लें। इसे किसी दायरे मे न बांधे।

हां पर एक बात है। आम आदमी होना कभी कभी बहुत खल जाता है। उस वक्त लगता है क्यों हम आम आदमी हैं! क्यों नही हमे भी अति विशिष्ट व्यक्ति का दर्जा प्राप्त नही है। जब पीछे से पुलिस की हूटर बजाती हुई, किसी अति विशिष्ट व्यक्ति की गाड़ी को स्कार्ट करती हुई महिन्द्रा थार या मारूति जिप्सी एवं उसके पीछे डंडा निकाल  बैठा हुआ व्यक्ति जब डंडे के मुभमेंट को ही अपनी भाषा मान ले और आगे बैठा हुआ व्यक्ति जब माइक पर तू तडाक की भाषा का इस्तेमाल करते हुए , आपको किनारे होने का आदेश देते हुए जब निकलता है न भाई तब वाकई महसूस होता है , अपने अति विशिष्ट व्यक्ति न होने का। ऐसा लगता है मानो किसी ने भरे चौराहे पर आपको थप्पड़ जड़ दिया हो और आप अपनी नजरों से ही नजर चुरा रहे हैं। यह अहसास ही आपको एक तड़प का अहसास दे जाता है।

पर, अति विशिष्ट व्यक्ति होना, क्या यह संभव है ? है ! बिल्कुल है। नियमों को रिलिजियसली फौलो करें। संविधान में आस्था रखें। न्यायशील बनें । आप खुद मे अति विशिष्ट व्यक्ति हैं। अति विशिष्ट व्यक्ति की परिभाषा क्या है! सामान्य तौर पर यही न कि आप औरों से अलग दिखाई दें। आपकी पहचान अलग हो। आप औरों से अलग जाने पहचाने जाएं। बहुत रास्ते हैं। ढेरों विकल्प हैं आपके सामने। आप अपने कर्मों से 'आउटस्टेंडिंग' हो जाएं। दुनिया आपको नोटिस करने लगेगी। आप अति विशिष्ट व्यक्ति हो जाएंगे। आपको चुनाव करना है। हां पर एक तय बात है! ज्योंही आप अति विशिष्ट व्यक्ति की श्रेणी मे शामिल हो गए, आपकी स्वतंत्रता तो गई समझो। आपके अपने स्पेस खत्म हो जाएंगे साहब। और तो और आपका पारिवारिक जीवन, आपका सामाजिक जीवन सब खत्म हो जाएंगे। आप अपने दोस्तों को शायद खो दें। अकेले हो जाएंगे आप !?!?बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी आपको। तय कर लें आप। अब तय आपको करना है। आप अति विशिष्ट व्यक्ति हैं या नहीं।

मैंने शुरुआत मे ही कहा कि यह एक सिंड्रोम है। अब गेंद आपके पाले मे है। अति विशिष्टता को संविधान के दायरे मे ही छोड़ दें। जहां इसकी जरूरत है। अपने आप को आम आदमी ही बने रहने दें। बेड़ियों मे इसे न जकड़े। जिंदगी का भरपूर मजा लें।
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आलेख - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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