Saturday 25 January 2020

मनु कहिन (15) / कोलकाता डायरी "भाग-1"

हड़बड़ी से कोसों दूर

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कोलकाता! भाई यूं ही नही भद्रजनों का प्रदेश है। तमाम राजनीतिक और सामाजिक विविधताओं के बावजूद सभ्यता और संस्कृति यहां आपको राह चलते अहसास दिलाते हैं। जिस प्रकार से दैनंदिन जीवन में आपको अनुशासन का अहसास होता है, वह आपको बिरले ही कहीं और नजर आता है। हिंदुस्तान के कई हिस्सों मे किसी न किसी कारण से दो-चार दिन रूकने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, पर कहीं भी आपको दिन प्रतिदिन के कामकाज मे इतना अनुशासन देखने मे नही मिलेगा।  यह इनके जीवन का हिस्सा है। ऐसा नही कि लोग इसे भार समझते हैं। शहर में इतनी भीड़ है कि अगर अनुशासन न हो तो जिंदगी बड़ी बेतरतीब हो जाएगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम सभी गैर कोलकाता वासी भी यहां बड़े ही अनुशासित हैं। अच्छा लगता है यह सब देखकर। काश! अपनी- अपनी जगहों पर हम इतने ही अनुशासित होते!

पर, हां अगर आप इनके लाइफ-स्टाइल को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि अनुशासित रहना कहीं न कहीं इनकी मजबूरी भी है। महानगरों मे अगर आप अनुशासित जीवन नही जीते हैं तो कोहराम मच जाएगा। आपने, अक्सर किसी बड़े हादसे के बाद लोगों को कहते सुना होगा कि महानगरों मे जीवन ठहरता नही है। लोग बड़े ही साहसी होते हैं। गिर कर, ठोकरें खाने के बाद भी संभलना जानते हैं। पर, साहब महानगरों की जीवन शैली ही ऐसी है जो रूकना चाहकर भी नही रूक सकती है। कुछ समय के लिए अगर रूक गयी तो कितनी जिंदगियां थम जाएंगी। निरंतर चलते रहना नियति है।

हां, जो एक बात जो मैंने कोलकात्ता वासियों मे गौर किया है वो कि इनका किसी काम को करने का अंदाज बड़ा ही निराला है। बड़े ही बेतकल्लुफी और आराम से कोई भी काम करते हैं ये लोग। जल्दबाजी या हड़बड़ी तो इनके शब्दकोष मे तो शायद है ही नही। अच्छी बात है, तभी तो सभ्यता और संस्कृति यहां परवान चढ़ी।

कोलकात्ता वाले अगर कहीं अनुशासन की पराकाष्ठा पर होते हैं तो वो इनका ट्रेफिक नियमों के मानने मे है। क्या मजाल कि कोलकात्ता वाले आपको ट्रेफिक नियमों को तोड़ते हुए पाए जाएं। लोग एकबारगी पुलिस को नजरअंदाज कर सकते हैं पर, ट्रेफिक सिग्नल और ट्रेफिक नियमों को नही। ऐसा नही है कि लोग यहां रैश ड्राइअविंग नही करते हैं पर, सार्जेंट की पर्ची से अपने आप को बड़ी दूर रखते हैं। ट्रेफिक सिग्नल को अमूमन फालो किया जाता है। शहर का ट्रेफिक अमुमन काफी धीमा है। घिस घिस कर चलता रहता है। ट्रेफिक का दबाव सड़कों पर इतना होता है कि आप सामान्यतः देखेंगे ट्रेफिक पुलिसकर्मियों को जोर जोर से चिल्लाते हुए ट्रेफिक कंट्रोल करते हुए। यह काम चुपचाप भी किया जा सकता है भाई। अपने शरीर पर अत्यधिक बोझ आपके खुद के लिए ही नुकसानदेह है।

कोलकात्ता शहर मे आप यह भी देखने को मिलेगा कि पुरा का पुरा फूटपाथ, फेरी वालों और छोटे छोटे फूड ज्वाइंट से पटा पड़ा है। जहां सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक भीड़ नजर आती है। आश्चर्य की बात है, कहने को महानगर है पर, खाने का मेनु बिल्कुल घरेलू। आप पुरी सब्जी, नुडल्स, इडली - डोसा,  सैंडविच के साथ ही साथ चुडा दही एवं खिचड़ी का भी आनंद ले सकते हैं। मेनु मे पुरे हिंदुस्तान से आए हुए लोगों को समाने की कोशिश। पूरा का पूरा समाजवाद। 

कहने को स्ट्रीट फूड है पर कुछ एक जगहों को छोड़कर लगभग छोटे छोटे फूड ज्वाइंट से कोलकात्ता शहर का हर फूटपाथ पटा पड़ा है। पर, इसके बावजूद एक बात जो काबिले गौर है कि कहीं भी फूटपाथ पर चलने वाले पर कोई रोक टोक नही है और न ही फूड ज्वाइंट वालों को कोई परेशानी है। उसी फूटपाथ पर लोग होटल चला रहे हैं। लोग-बाग खाना खा रहे हैं। आने जाने वाले लोग फूटपाथ का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। किसी को कोई दिक्कत नही, कोई परेशानी नही। अंतर भी साफ दिखाई देता है। एक तरफ कोलकात्ता का दिल पार्क स्ट्रीट और उसके आसपास का एरिया कामाक स्ट्रीट वगैरह है जहां एक से एक बढ़कर रेस्तराँ और होटल हैं जहां आकर आम आदमी सपनों की दुनिया मे खो जाता है । वो हकीकत भूल जाता है। जिंदगी उसे परी कथाओं सी लगने लगती है। चलिए कम से कम कुछ ही देर के लिए सही , कुछ तो सुकून के पल गुजारता है बेचारा आम आदमी। तो वहीं दूसरी तरफ चौरंगी के आसपास, एवं  प्रसिद्ध मिठाई की दुकान केसी दास के लगभग पीछे वाली गली है जो स्ट्रीट  फुड ज्वाइंट  से पटी पड़ी है और आम आदमी के खाने-पीने का ख्याल रखती है।‌‌। आपको पुनः सपनों की दुनिया से उठाकर आपको अपनी जगह ले आता है। 
*क्रमशः* 
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आलेख - मनीश वर्मा 
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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