कविता
(मुख्य पेज पर जाइये - bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटों पर देखिए - FB+ Today)
तिल गुड़ देते है
संक्रांति मनाते है
ठंडी ठंडी बहे पुरवइया
मन को लुभाती रजइयां
धरा ने पहनी धानी चुनरिया
तन मन में उमंग हर्ष समाया
मक्रर संक्रांति का त्यौहार
तिल गुड़ खिचड़ी का त्यौहार।
तिल गुड़ देते है
संक्रांति मनाते हैं
पंडित उपदेश सुनाते
मन में उलझन उपजाते
तरुवर पर कोयल बोले
हृदय में आनन्द घोले
तिल गुड़ सब को भाये
संक्रांति सब मनाये।
पुष्प वटप लता पर इतराये
जन मानस का मन हर्षाये
तरुवर के नव पल्लव झूमें
बच्चे सारे झूमें नाचे गावे
पतंगों के बाज़ार सजे
सतरंगी पतंगें मन में उलझीं।
पतंगों के पेंच आकाश लड़ें
डोर पकड़ बच्चे करतब करे
हिया में तरंगें गगन चढे
कदम थिरक थिरक
पतंग लहराये
तिल गुड़ देते है
संक्रांति मनाते है।
पीली पीली सरसों लहराये
किसान खेत दोनों झूमन लागे
बसंत का हुआ आगमन
धरा का आंचल लहराये
गौरी झूला झूलन लागे
सखियां सब शिकवा करन लागे
आया मक्रर संक्रांति का त्यौहार
तिल गुड़ और खिचड़ी का त्यौहार.
........
कवयित्री- अलका पाण्डेय
कवयित्री का ईमेल - alkapandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com