श्श्श्श....चुप्प...
श्श्श्श...चुप्प...
अभी मन कुछ डोल रहा है
मस्तिष्क भी कुछ बोल रहा है
बरसों दफन था ,जो दर्द सीने में
उसे आज मौन तौल रहा है
श्श्श्श....चुप्प....
सांसें कुछ-कुछ चढ़ी हुई है
बातें बहुत कुछ गड़ी हुई हैं
घुटी -घुटी हैं आवाज गलें में
जाने कब से उंघती पड़ी हुई हैं
श्श्श्श .....चुप्प......
अरे, अनल है कहीं भभका
हां,कुछ दिख गया भीतर का
नया सबेरा दस्तक दे रहा
चल,खोलें द्वार हम जीवन का.
.....
मैं 'भारत'
सुवर्ण- खचित, अभिराम, निष्कलुष
मेरे मस्तक पर शोभित हिमकिरीट
दसों दिशि प्रशंसित-स्नेहसिक्त
गर्वोन्नत ग्रीवा, मैं 'भारत'!
युवा-उष्ण-ऊर्जा से गुंफित
उत्कट अभिलाषा से संचित
गौरवपूर्ण-उपलब्धियों का प्रकाश
अशेष विजयों का स्वर्ण-इतिहास
मेरी गोद, हुलसे है किलकारियां,
खेतों में हैं पुलकित स्वर्ण-बालियां.
हैरान संसार मेरे अध्यातम-ज्ञान से,
सुरभित विश्व मेरे केसर- गंध से
मेरे चरणों पर है सागर नत
मेरे हुंकार से है दुश्मन पस्त
मेरा चंद्रयान छू रहा ब्रह्मांड
नहीं सका कोई मुझे कभी बांध.
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कवयित्री - पूनम (कतारियार)
कवयित्री का ईमेल - poonamkatriar@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com