Wednesday 4 December 2019

खोज एक बचपन की / युवा कवि - विजय बाबू

खोज एक बचपन की

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बचपन - मन की नादानी
अरमान भरे पल रूहानी
यादें हुई न अभी पुरानी
बात आगे करें दिन में जो आना बाकी ।

बिंदु-सा बिन आकार की
रही अजूबा एक कहानी
रेखा-सी पतली डगर अपनी
बीत चुके कुछ पल और आगे है बाकी 

दादी नानी कहती कहानी
सुनते किस्से उसकी जुबानी
राजा दुलारा, दुलारी रानी
वक़्त वक़्त की बातें है अभी और बाकी ।

मासूमियत भी भोली सी
लिखते पढ़ते हूई सयानी
चंचल मन चले राह जवानी
जीवन कारोबार में वसूल अभी और बाकी 

बढ़ता कारवाँ दौलत का
बढ़ती कश्ती शोहरत की
मंज़िले जैसे बहता पानी
छूटते बनते रिश्ते हैं अभी और कुछ बाकी 

बुलंदी चाहे हो आसमानी
चहकती दुनिया सतह पर यहीं
पाकर मन करता मनमानी
जैसे कतार में अरमान है न और बाकी
......
कवि - विजय बाबू
कवि का ईमेल - vijaykumar.scorpio@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com