Tuesday 19 November 2019

चलूँ ‘मैं’ को ढूँढने / *युवा प्रतिभा*- विजय बाबू

कविता 

 (मुख्य पेज पर जाइये -   bejodindia.blogspot.com /  हर 12 घंटों पर देखिए -  FB+ Today) 



दुनिया मीटर फीते सी
रफ्तार भी उसी की जैसी 
कभी धीमी कभी तेज
पाने कुछ बहुत घुमाती 

घूम रही ज़िन्दगी की धुन
गाये सब मन में गुनगुन
मिले खुशी और सहे गम
सीढ़ी-दर-सीढ़ी लक्ष्य को बढ़ें हम  

लक्ष्य मुक्कमल जहां का 
खुशियों के आसमां का 
थोड़ा मलाल भी मन में
खोते नज़ारा कहाँ कहाँ का ? 

आकाश सा मुकाम ऊंचा 
एहसास अपनी जिंदगी का 
गुणा-जोड़ करते करते
खुद को खुद में तलाशते

मुक्कमल आसमाँ निहारते
 हासिल की बुलंदी में भी
क्या खोया क्या पाया
गुमसुम मन खुद से पूछता 

आओ चलो लौट चलें
बुलंदी भी एक भँवर सा 
भीड़ से बहुत आगे क्यों
आखिर ये कारवां बढ़  चला 

लौटा गगन की ऊँची मंजिल से
प्रगति की वापसी राह पर
देखे मन हर एक का मुकाम
चुपके से खुद को निहारता 

बढ़ती उम्र अनुभूति करती 
जीवन है मन की दुनिया 
सोचती व कहती खुद से
मन ही मन 'मैं' को तलाशती
..........
कवि- विजय बाबू
कवि का ईमेल - vijaykumar.scorpio@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com