सुखी जीवन का सार
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आम आदमी बिचारा!
कहां फुर्सत है उसे कि वो ज्यादा पंख फैलाए! अपने सपनों को साकार करे!
पूरी जिंदगी तो बिचारे की बीत जाती है दाल रोटी की जुगाड में। जिंदगी घिस-सी जाती है दुनियादारी निभाने में!
पर , कितना निभा पाता है वो ? बिचारा आम आदमी!
जिंदगी की शुरुआत होती है दाल रोटी की जद्दोजहद से। बीच की जिंदगी किसी प्रकार कटती है बाल बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए, दुनियादारी निभाते हुए। जब जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर होता है तो पुनः प्रयास करता है कि जो जिम्मेदारियां बच गई हैं जिसे वह खुद की मानता है, उसे निभाने के बाद ही इस इहलोक की उसकी यात्रा पुरी हो।
क्यों दूसरों के भरोसे छोड़कर जाए वो? आखिर कितनी मशक्कत के बाद, किसी पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों की वजह से, आखिरकार चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात उसे यह जिंदगी मिली है।
जीवन के आखिरी पड़ाव पर भी वह कुछ न कुछ छूट जाने की बात करता है। किसी अपने को इस विश्वास के साथ उस बोझ को सुपुर्द करता है कि चलो अब वह शांति से दूसरे लोक की यात्रा पर जा सकेगा।
क्या यह संभव है दोस्तों?
अगर यह संभव हो पाता तो विश्व में गुरूओं की संख्या कम हो जाती। सारे गुरु जन कहीं न कहीं इन्हीं सब बातों से परेशान हैं। आज भले ही हमें वो रास्ता दिखाने का प्रयास करते हैं। पर, दिल पर हाथ रख कर बोलें सच्चाई क्या है?
हम सभी एक भुलावे में जी रहे हैं। सच्चाई का सामना करने की हिम्मत नही है हम सभी में।
हरवक्त एक अनजाने भय के आने की आशंका से ग्रसित रहते हैं।
इन बातों से उपर उठें। सच्चाई नही है इनमें। मिथ्या है, यह सब। मृगतृष्णा है।
मृगमरीचिका को देखकर आनंदित होते हैं हम सभी।
जो निश्चित है वो होकर रहेगा। प्रारब्ध पर भरोसा करें। जीवन आनंदमय रहेगा और शायद यही सार भी है सुखी और आनंदमय जीवन का।
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आलेख - मनीश वर्मा
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