जिनके आशीर्वाद से, आज बना इंसान।।
आज बना इंसान, व्यर्थ था मानव जीवन।
पाकर ही सद्ज्ञान,हुआ है सार्थक यौवन ।
कह 'बाबा' कविराय, नीति सीखी है जबसे।
पाकर गुरु आशीष, स्नेह मिलता है सबसे।।
2
जिनसे सीखा है कभी, एक वर्ण का ज्ञान।
रह कृतज्ञ मैं मानता,उनको ब्रह्म समान।।
उनको ब्रह्म समान,समझ मैं आदर करता।
पाकर अक्षर ब्रह्म, निडर हो नित्य विचरता।
कह 'बाबा' कविराय, बहुत कुछ सीखा उनसे।
दिल से देता मान बना हूँ साक्षर जिनसे।।
3
गुरुवर सीखा आपसे, जो कुछ छंद विधान।
सदुपयोग मैं कर रहा, जितना पाया ज्ञान।।
जितना पाया ज्ञान, उसी से कुछ लिख पाता।
मिलता है संतोष, मंच पर खूब सुनाता।
कह 'बाबा' कविराय, श्रेष्ठ ज्यों वट है तरुवर।
सद्यः ब्रह्म समान, हमारे पूजित गुरुवर।।
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कवि- बाबा वैद्यनाथ झा कवि का ईमेल आईडी - jhababa55@yahoo.com
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