Thursday 6 June 2019

हवाओं ने नभ में है मधुर संगीत छेड़ा / डॉ. चंदन अधिकारी की कविताएँ


 हवाओं की फितरत



हवाओं ने नभ में है मधुर  संगीत छेड़ा
कुदरत के करिश्मों को बोलों में जोड़ा
चिड़ियों की चहक को मुखड़े में मोड़ा
नदियों की कलकल से सरगम  को छेड़ा / १

नाना धुनें हैं और नाना हैं राग
कहीं पर यमन और कहीं है बिहाग
नाना हैं रस जैसे भक्ति और अनुराग
सुहागन रसवंती है और नभ है सुहाग / २

पुष्पों की सुगन्धि बन गयी सुगन्धिनी नार
नभ में करती है अल्हड  स्वछन्द विहार
मरुत के स्पर्श से है हलचल  अभिसार
विचलित है अनंग स्वर्ग के उस पार / ३

मेघों ने है  गीत गाया मेघ - मल्हार
पुष्पों की पंखुड़ियां खुलती करती बहार
परागों ने मिलकर बनाया तिलस्मी सिन्दूर
सुंगन्धिनी नार को रखे ये पिय से न दूर / ४
...

 जब कली से है  फूल खिलता

जब कली से है  फूल खिलता
मधुकर का मधुर संगीत सुनता
मधुवन के पर्व का अंग बनता
अनुपम छटा में है रंग रंगता
जब कली से है  फूल खिलता / १

संकुचन का जब विस्तार होता
कली से तब है फूल बनता
प्रकृति से मिलती है ममता
ममता में  अद्भुत  है समता
जब कली से है  फूल खिलता / २

सूरज की गर्मी से कुम्हलता
चंदा की किरणों से सम्हलता
पवन के बेगों से निपटता
जब तक है जां तब तक है खिलता
जब कली से है  फूल खिलता / ३

फूल खिलता, हम  सबसे कहता
सघनता से जन्मी विरलता
जीवन में पाए गर समरसता
छू मंतर हो जाये नीरसता
जब कली से है  फूल खिलता / ४
...


कालिंदी प्रणय

यमुना की लहरें उछलने लगी हैं
प्रीतम के चरण छूने के लिए
निज ध्यास निज नाद का न संज्ञान है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / १

युगांतर की प्रतीक्षा ख़तम हो गयी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
अँधेरी रात उजली लगने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / २

समय से थमने की गुहार करने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
निज भाग्य को सराहने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / ३

बंदिश तीरों की अपनी कोई नहीं है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
काली रात की कालिंदी मिलने चली है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / ४

एकांत के प्रशांत को पाने चली है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
निनाद निज अपना भूल चुकी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए / ५

वसुदेव से थम चल विनय करने लगी है
प्रीतम के चरण छूने के लिए
अपनी लहरों को चुप करने लगी है
चरणस्पर्श की मधुर चाप सुनने के लिए/ ६
....


 परिवर्तन

प्रातः घर की  प्राची की खिड़की से
जब मैं बैठे बैठे बाहर झांकता हूँ
मुझे दिखता ही काजू का पेड़
और उसके बड़े बड़े हरे पत्ते
शबनम की बूदों से लबालाब
तरुणाई से छकाछक 

मंद समीर उनकी तरुणायी को
और अधिक अल्हड बना देता  है
सूरज की मनभावन किरणें
उनको चार चाँद लगा देते  हैं
वे अपनी मस्ती में मस्त
क्रीड़ा विहार करते हैं 

एक से दो और दो से तीन
और तीन से चार का संयोग
अनुपम छटा की कहानी कहता है
और परिपूर्णता की महिमा गढ़ता हैं
खुदगर्ज़ी की क्षुद्रता और
समष्टि की महानता बताता है

कुछ घंटे बाद मैं पुनः पत्तों को देखता हूँ
वही हरे पत्ते समीर से लहराते
पर शबनम अब नदारद थी
वह अपना काम कर चुकी थी
संक्षिप्त जीवन, उद्देश्यपूर्ण जीवन
लुभावना, बालसुलभ जीवन

समयांतर सूरज चढ़ चुका था
मलय भी शांत हो चुका था
परिवर्तन, परिवर्तन, परिवर्तन
सृष्टि का अटल नियम है की
उद्घोषणा प्रकृति के कोने कोने से
शंखनाद कर हमें कुछ सिखा रही थी.
...


प्रेम का भाव

प्रेम का भाव ही, ईश का स्वभाव है
प्रेम का भाव है तो कहाँ अभाव है
प्रेम की बानगी ह्रदय की सादगी है
प्रेमाभिव्यक्ति वाणी की मिठास है / १

न कहीं खटास है हर जगह मिठास है
न कहीं उपहास है हर जगह उपहार है
हार में भी जीत है जीत में संगीत है
जीत हार में भला क्या कोई बिभेद है / २

प्रेम का व्यवहार ही ईश का व्यवहार है
प्रेम का व्यवहार है तो कहाँ विषाद है
प्रेम ही माधुर्य है प्रेम ही सायुज्य है
प्रेम ही पवित्र और प्रेम ही परमार्थ है /३

प्रेम पथ जो चले सफलता उसके हाथ है
वो अकेला नहीं जग सारा उसके साथ है
प्रेम पथ के पथिक को सर्वदा विश्रांति है
मैं मेरा और तू तेरा में न कोई भ्रान्ति है/ ४
...
कवि- डॉ. चंदन अधिकारी
कवि का ईमेल आईडी - csadhikari52@gmail.com 
कवि का परिचय- डॉ. चंदन अधिकारी आईटीएम, नवी मुम्बई नामक  प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान में 'डीन' के पद से सेवानिवृत हुए हैं और वर्तमान में एनएमआईएमएस नामक प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान में अनुबंधक प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हैं. इनकी ही पहल पर आईटीएम में प्रतिमाह काव्योत्सव होता है जिसके अंतर्गत अब 100वीं गोष्ठी होनेवाली है.
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com