कुछ राज एसे भी होते हैं , जो हम खुद से छिपाते हैं
कुछ राज एसे भी होते हैं , जो हम खुद से छिपाते हैं
दो जाम अंदर जाते ही, खुद-ब-खुद बाहर आ जाते हैं।
जमाना ऐसा आ गया है अपने, हो गए हैं अब गैर
बुरे वक़्त में अपने नहीं अब गैर ही काम आते हैं।
छलकते है जाम उनकी शराबी, आंखों से इतने
कितना भी पीयें हम शरबते दीद, मुक्त नहीं पाते हैं।
पहले पल पल सोचते हैं बेटी के हाथ पीले करने के लिए
सात फेरे होते ही विदा के वक़्त रो रो-के बेहाल हो जाते हैं।
विजय ने संभाल के रखें हैं कदम अपनी जिंदगी में
लोग उनसे जिन्दगी के मसलो पे अस्लाह करने आते हैं।
.....कवि- विजय भटनागर
परिचय- श्री विजय भटनागर एक सेवानिवृत वैज्ञानिक हैं और नवी मुम्बई में अत्यंत सक्रिय कवि हैं जो काव्योदय नामक संस्था के मुख्य आधार-स्तम्भ हैं.
वर्तमान निवास - नवी मुम्बई
मोबाइल- 9224464712