Saturday 22 June 2019

मनु कहिन (1) - इंडियन कॉफी हाउस कलकत्ता

 कई धाराओं को समेटे हुए कॉफी हाउस
सत्यजीत राय और मन्ना डे जैसी शख्सीयतों का भी खूब जुड़ाव रहा है इससे



मेरे बचपन का कलकत्ता, आज का कोलकाता। मेरी जुबां से आज भी कलकत्ता ही निकलता है। भद्र जन,  मुझे माफ करें। जी हां, कोलकाता बुद्धिजीवियों का शहर कहना शायद अतिशयोक्ति नही होगी । कोलकाता की सडकों पर, वहां की गलियों में आप यायावर की तरह घूमें। आपको अहसास हो जाएगा। 

संस्कृति और सांस्कृतिक चीजें जहां विरासत में मिलती हों। अनुशासन, जिसका महानगर में अभाव पाया जाता है वो यहां आपको प्रचुर मात्रा में मिलेगा। क्या मजाल कि रात के "ऑड आवर्स" में भी कोई गाड़ी वाला सिग्नल तोड़ता हुआ आपको मिले। अपने आप पर जहां इतराने को बहुत कुछ हो, वो शहर है कोलकाता । 

कॉलेज स्ट्रीट का वो अल्बर्ट हॉल जो कालांतर में इंडियन काफी हाउस के नाम से विख्यात है । प्रेसीडेंसी कॉलेज के सामने एक बडी सी इमारत के प्रथम तल पर चलता हुआ। एक समय मे एक साथ कई धाराओं को समेटे हुए। बिना किसी टकराव के सभी धाराएं एक दूसरे के समानांतर चलती हुई।

पुरानी लकड़ी की बुनाई वाली या फिर प्लास्टिक की कुर्सियों पर किसी कोने में कोई परिवार के साथ बैठा है तो कोई  कॉलेज का छात्र अपनी/अपने दोस्तों के संग, मेज पर रखी अपनी पसंद की स्नैक्स और कॉफी चाय के साथ,  किसी विषय पर चर्चा में मशगूल है। कहीं दो चार बुजुर्गों की महफिल जमी है तो कहीं किसी कोने मे बौद्धिक और सांस्कृतिक बातें चल रही हैं। जब भी, रात के 9 बजे, बंद होने के समय तक किसी भी समय आपको हॉल की कुर्सियां खाली नही मिलेगीं। वहां के बैरे सफेद रंग के ड्रेस में कलगी वाली टोपी पहन हर आने-जाने वाले लोगों का ध्यान रखने की कोशिश करते हुए पाए जाएंगे। इतनी भीड़ के बावजूद "प्रदीप दा" एक सौम्य-सा व्यक्तित्व  ( देखिए मैं सिर्फ एक बार वहां गया हूं और मैं भी जान गया प्रदीप दा की अहमियत) सभी के स्वाद का ख्याल रखते हुए पाए जाते हैं। हर व्यक्ति वहां आपको प्रदीप दा को ही बुलाता नजर आएगा और वो किसी को निराश भी नही करते।

लोग कहते हैं , कई बार विभिन्न कारणों से कॉफी हाउस लगभग बंद होने के कगार पर पहुंच चुका था। पर इसकी लोकप्रियता ने लोगों को मजबूर किया आगे आने के लिए ताकि इसका अस्तित्व बचा रह सके। लोगों ने मिलकर बचाया है इसे।

आपको वहां पर बहुत से लोग मिलेंगे जो लगभग प्रतिदिन आते हैं। वे मिल जाएंगे अपनी पसंद की कॉफी / ब्लैक कॉफी साथ में कुछ स्नैक्स पर चर्चा करते हुए। पुराने समय में शहर के या यूं कहें देश के चर्चित नामों ने भी वहां अपनी शामें गुजारी हैं। पुराने लोग गवाह हैं इन बातों के।

सत्यजीत राय उनमें से एक प्रसिद्ध नाम था। मन्ना डे ने इस कॉफी हाउस पर तो पूरा  का पूरा एक गीत ही गाया है।

हां, एक महत्वपूर्ण बात जो मेरे संज्ञान में आयी वो यह कि "नो स्मोकिंग" के स्पष्ट निर्देश के बावजूद धुएँ के गुबार का उठना। पर, कहीं न कहीं यही पहचान है। यही उसका हस्ताक्षर हो सकता है। 
अतः इसपर ध्यान न दिया जाए। मैंने कुछ लिखा नही, आपने कुछ पढ़ा नही।
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आलेख -  मनीश वर्मा
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चित्र साभार - विकीपीडिया