बेवा
आते-जाते
छुपी
नज़रों
से
क्या
ढ़ूढ़ते
हो
मेरी
झुकी
पलकों
में
क्या
देखते
हो
तेरे
पवित्र
नज़रों
को
पढ़
लिया
अजनबी
कभी
रंग
ला
सकती
नहीं
चाहत
तेरी
नज़रों
की
गफ़लत
में
न फंस
जाना
मेरे
बदर
न आना
बदनाम
ये
दर
है
कहूं
क्या
दास्तां
, आंसुओं
का
समंदर
है
दुनिया
ने
कुचला
है
ज़माने
ने
मसला
है
कई
काबे
जुफ़ाफ
गुज़री
हुई
हूं
मैं
अपनों
ने
छोड़ा
, दरिंदों
ने
नोचा
है
सूरत
बनी
दुश्मन,
जवानी
ने
मारा
है
सवाल
जे़हन
में
बग़ावत
पर
उतारू
है
क्या
बेवा
को
दिल
नहीं
होता
क्या
उसके
अरमां
नहीं
मचलते
बता
ऐ जहां
इंसाफ़
के
तराजू
पर
जीवन
ख़ुद
जीने
का
हक
है
कि
नहीं.
...
अंधेरा सिमट रहा है
भागमभाग की दुनिया में
जिंदगी ठहरी हुई है
रात
मान
सोयी
हुई
सी
है
ऐसे
कटेगी
नहीं
ज़िन्दगी
दुनिया
अभी
भी
खुबसूरत
है
प्रकृति
दिल
खोले
हुए
है
जाग,
सूरज
निकल
रहा
है
शैने-शैने अंधेरा सिमट रहा है.
शैने-शैने अंधेरा सिमट रहा है.
....
कवि- डॉ. लाला आशुतोष कुमार शरण
कवि परिचय - डॉ. शरण एक सेवानिवृत विभागाध्यक्ष प्राध्यापक हैं और इनका एक कविता संग्रह प्रकाशित हो चूका है.
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com