Wednesday 20 February 2019

उभरती प्रतिभा / स्वर्णिम सौरभ की कवितायेँ

कविता -1



वो शाम भी कितनी बेगानी थी 
उस दिन ज्यों सूरज ढल गया
मानो सब कुछ बदल गया
टूट गए मेरे अरमानो के पंख
दे गये मानो मुझको कितने ज़ख्म|

कल तक तेरा कुछ एक पल 
जो मेरे साथ था
मानो हर एक पल 
मुझको खुद पर नाज़ था

अब तो मधुर चाँदनी रातें हों 
या बिन मौसम घनघोर बरसातें 
अब ज्यों ही नयनं संजोता हूँ
मैं तो तुझ संग होता हूँl
.....

कविता-2

न तुम मुझसे रूठी हो
न मैं तुमसे रूठा हूँ
समय का फासला तो देखो
तुम आज भी दिल के पास हो
मगर  मैं तुमसे दूर बैठा हूँ
न तुम झूठी थी
न मै झूठा था
न झूठे थे वो पल
बस झूठा हो गया मेरा हर ख्वाब
जो मैंने तुझ संग देखा था।
...


नाम :स्वर्णिम सौरभ
पता: बेतिया (पश्चिम चंपारण)
शैक्षणिक योग्यता :एम.सी. ए
कार्य: सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट