Thursday 14 February 2019

वैलेंटाइन डे पर विशेष / मेरा अनोखा प्रेम - कंचन कंठ

(नोट - यह लेख यूं तो पहले ही लिखा गया था किन्तु कल की घटना के बाद और अधिक प्रासंगिक हो गया है. भारत माँ को अपने खून से सींच कर हमारी रक्षा करनेवाले सभी शहीदों को कोटिशः नमन)

प्रेम.......आह प्रेम .....   वाह प्रेम 



प्रेम, प्यार ,मुहब्बत और भी न जाने कितने नाम! मै तुच्छ प्राणी इसके बारे मे क्या कहूँ ?

बड़े -बड़े संत, ज्ञानी ,कवियो ने जाने कितनी परिभाषाएं, कितनी व्याख्याएं कर डाली है!
हर सभ्यता,हर संस्कृति मे प्रेम पर इतना कुछ कहा गया है- इतने प्रकार इतने रूप कि मै तो हतप्रभ हो जाती हू।आदि प्रेम, अंत प्रेम ,अनंत प्रेम।

पर सबसे उपर है यह 7-14 फरवरी वाला! प्यार को लोगो ने हफ्ते मे बाँध कर रख दिया है। जहा देखो इसी के चर्चे ,इसी की धूम।घर , गली -मुहल्ला,चौक-चौराहा,स्कूल-काॅलेज,बाग-बगीचे कुछ भी तो नही बचा इससे। हर उम्र, हर तबका बेहाल!

फिर बाजार के वैश्वीकरणने भी इसे बढावा देने मे कोई कसर नही छोड़ा। फूल,कार्ड्स,खिलौने, ज्वैलरिज आदि मंहगे मंहगे गिफ्ट्स लिए और दिए जाते हैं। कई बार तो कीमत ही प्यार - मुहब्बत का पैमाना मान लिया जाता है। जिसके लिए पता नही क्या- क्या जुगाड़ लगाते है , कितने पापड़ बेलते है।

इस सब मे वो प्रेम की निश्छल ,कोमल ,नाजुक भावनाएँ कही गुम सी हो गई लगती हैं।  हमने बचपन से सीखा कि लेन देन प्यार, विश्वास, इज्जत का ही होना चाहिए, यह नही कि मौका मिले कि सर पकड कर मूंड ही डालो सामनेवाले को। तो दुनिया की ये रीत रास नही आती, क्यों दिखावटी भेड़ चाल के पीछे भागना?  क्यों अंधाधुंध नकल करना? 

कुछ ऐसा करू जो खुद को भी संतुष्टि दे और किसी के होठो पर मुस्कान ले आए। जो न किसी फैक्ट्री की उपज हो, न कही बिकता हो।

तो मैने संपूर्ण मानवता के लिए अपने प्रेम को दर्शाने के लिए, मानव -मात्र के कल्याण मे जुटे असंख्य, अथक हाथो को कृतज्ञता ज्ञापन के लिए रक्तदान करने का निर्णय लिया। मै अपने इस छोटे से योगदान के लिए ईश्वर को लाख- लाख धन्यवाद ज्ञापन करती कि उसने मुझे इस योग्य बनाया। भगवान् आपका सहस्त्र आभार मुझे स्वस्थ रखने के लिए भी।
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आलेख -कंचन कंठ
छायाचित्र सौजन्य - कंचन कंठ 
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