गर तेरे ख़्वाब मेरे अरमान / फिर मिल जाएं तो कैसा हो
ग़र तेरे ख़्वाब मेरे अरमान
फ़िर मिल जाएं तो कैसा हो!
यदि तेरे आंसू मेरी तड़पन
एक हों जाएं तो कैसा हो
न ग़म होंगे न तूफ़ां उठेगें
न शिकवा होगी न शिकायत
जीवन पटरी पर लौट आएगा
यह ख़्वाब कल भी आया था
कभी लिए थे सात फेरे दिल से
सात जन्मों तक साथ रहने के
उबड़-खाबड़, हिचकोले खाते सही
चल तो ठीक रही थी ज़िंदगी
लहरों संग ऊपर-नीचे नैया पार लगती है
माना कि भावनाओं का सम्मान है परिणय
दिलों में बसे अरमानों का गठबंधन है शादी
जीवन साथी संग साथ निभाना एक अदा है
ऐसा क्या हुआ सब भूल कर तोड़ दिया
बिना दिलों में झांके रिश्तों का बंधन
तुम्हें चाहा था दिलो-जान से
लौ जलाए रखी है अब तक
शायद साथ जाएगी चिता पर
सबकुछ मिलता नहीं मुआफ़िक़
राहें ढ़ूंढ़ चलती रहती है ज़िन्दगी
क्यों न रातों के सपने सच करें
एक नये प्रभात का सूरज उगाएं
अरमानों को पंख दे, उड़ान भरें
लो मैं ही पहल करता हूं प्रिये
जो हुआ उसे भूल कर करवट बदल लें
सांसों की गर्मी, दिलों की धड़कन
कर साझा,बहारों को मुस्कुराने दें
चमन में वसंत फ़िर से लौट आने दें।
....
कवि- लाला आशुतोष कुमार शरण
कवि का ईमेल - lalaashutoshkumar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com