Thursday 11 April 2019

दिल्ली की कवयित्री विनय पंवार के कविता संग्रह "दिल से बस यूं ही" पर किरण सिंह का आलेख

उंगलियों से चन्द्रमा पकड़ने की कोशिश 



अक्सर ही हमारे हृदय सागर में भावनाओं और संवेदनाओं की लहरें उथल पुथल कर किनारे की आस में अपना सर पटकती रहती हैं! हृदय की वेदना या तो आँखों से अश्रु के रूप में झर कर स्वयं को समाप्त कर लेती हैं या फिर अभिनय कला से छुपा लेती हैं! पर लेखनी उन अश्रुओं में डूबकर चाहे वे खुशी के हों या फिर गम के उनकी वकालत कर उन एहसासों को न्याय दिला ही देती है जो अक्सर ही निकल ही जाते हैं दिल से बस यूँ ही! 

मैं बात कर रही हूँ कवियित्री विनय पंवार के प्रथम काव्य संग्रह की जो 96 पृष्ठ में संग्रहित  गुलाबी रंग के कवर पृष्ठ में लिपटी पुस्तक जिसपर बहुत ही खूबसूरती से लेखिका विनय पंवार के उँगलियों से चन्द्रमा पकड़ने की कोशिश करते हुए चित्र उकेरा गया है जो सहज ही पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सक्षम है! 

संकलन में लेखिका ने स्वयं ही कहा है कि जब कुछ अनजाने से भाव बाहर आने को उतावले हो जाते थे और मन बेचैन हो जाता था जो शान्त हुआ शब्दों के खेल से जो धीरे-धीरे शौक में बदल गया! 

संकलन की प्रथम कविता प्रेम और शक्ति पढ़कर ही लेखिका के भावों को समझा जा सकता है!

मेरे ईश, मेरा प्रेम 
मेरी रूह , मेरी जुबां 
मेरे कान्हा, मेरी पूजा 
मेरी शक्ति, मेरा स्वरूप 
मेरी माँ मेरी आराधना 
एक विनय के दो रूप 
जिनसे होती हूँ परिपूर्ण

स्त्री अपने जीवन में एक साथ कई रिश्तों में विभाजित हो जाती है और हरेक रिश्तों के साथ न्याय करती हुई जीती है यह इस संकलन में देखने को मिलता है! 

लेखिका ने अपनी रचनाओं में कान्हा से लेकर अपने माता पिता, पति तथा सगे सम्बन्धियों यहाँ तक कि अपने फिडो (पालतू कुत्ते) तक को विषय बनाया है और खूबसूरती से लिखा है! 
अपने जीवन साथी को लिखती हुई कवियित्री के भाव....

चन्दा की शीतलता संग 
खिली धूप की गर्मी जैसे 
रिमझिम फुहारों में 
इन्द्र धनुष के रंग जैसे 
परिपक्व सोच है ऐसे

अपने पिता के लिये कवियित्री के भाव...

पहला अहसास सुरक्षा का 
पहला आभास सुकून का 
पहली नजर अपनेपन की 
पहली अदा अल्हड़पन की 
पिता की गोद में...

यहाँ पर कवियित्री ने अपने नारी होने पर गर्व करते हुए लिखा है..

हाँ नारी हूँ मैं 
बाजुओं में जोर 
न समझना मुझे कमजोर 
साहस का आधार हूँ मैं 
काली का अवतार भी मैं

इस प्रकार कवियित्री ने इस संग्रह में कई विषयों पर अपनी कलम चलाई है जो सराहनीय है 
रिश्वत, आँखों का मायाजाल, तिरंगे का मान.

रोटी का गणित, चुनौती, बेबाकी, आक्रोश आदि..जो सहज ही मन को बांधकर भावविभोर कर देता है पर इस संकलन की अंतिम कविता.. अंतिम इच्छा हृदय को छू लेती है और पढ़ते पढ़ते नयनों को सजल कर देती है.. 
मेरे मरने का गम न करना तुम 
बस मेरी चाहतों का ख्याल रखना 
साड़ी हो गुलाबी रंग की 
मेरी माथे की बिन्दी जरूर सजाना
और फिर 
मुझसे बेहतर गर तुम्हें मिले कोई 
अफसोस अपनी जिंदगी पर मुझे 
कि काश मैं पहले जाती तो 
तुम्हें बेहतर जिंदगी दे पाती 

संग्रह में यह दृष्टिगत है कि कवियित्री ने जो कुछ भी लिखा है दिल से लिखा है! और दिल की बातें दिलों को न छुए ऐसा हो नहीं सकता! 

कुल मिलाकर यह काव्य संग्रह पठनीय है! जिसका मूल्य मात्र 170 रूपये है |
लेखिका की उन्मुक्त लेखनी यूँ ही दिल से निकले जज्बातों को हर दिलों तक पहुंचाती रहे ऐसी हम कामना करते हैं! 
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कविता संग्रह - दिल से बस यूँ ही 
रचनाकार- विनय पंवार 
युवराज प्रकाशन 
पंजाला, नारायण गढ़, अम्बाला, हरियाणा
समीक्षक  - किरण सिंह 

समीक्षक - किरण सिंह